“सच्चा मित्र मिल जाने अथवा उनका संग्रह करने से मनुष्य को बल प्राप्त होता है”
- चाणक्य
“अर्थात् मनुष्य सच्चे मित्रों के कारण अपने को बलवान अनुभव करता है”
- चाणक्य
“मनुष्य को सच्चा मित्र मिलने से जो बल प्राप्त होता है, उसे सात विभिन्न रूपों में देखा जाता है।”
- चाणक्य
“यह बल उसे अपने स्वामी, मंत्री, देश, दर्ग, खजाना, सेना”
- चाणक्य
“और मित्र आदि के रूप में प्राप्त होता है”
- चाणक्य
“अर्थात् इनमें से कोई भी एक या एक से अधिक स्रोत उसके पक्ष में होते हैं”
- चाणक्य
“तो व्यक्ति अपने आप को शक्ति-संपन्न मान सकता है।”
- चाणक्य
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ऐसे लोगों के कार्य कभी सफल नहीं होते।
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