“धन के की माया से कौन बच पाया ”
- चाणक्य
“जब मनुष्य के पास धन नहीं रहता”
- चाणक्य
“उसके मित्र, स्त्री, नौकर-चाकर और भाई-बंधू ”
- चाणक्य
“सब उसे छोड़कर चले जाते हैं।”
- चाणक्य
“यदि उसके पास फिर से धन-संपत्ति आ जाए”
- चाणक्य
“तो वे फिर उसका आश्रय ले लेते हैं।”
- चाणक्य
“संसार में धन ही मनुष्य का बन्धु है”
- चाणक्य
“इसी के इर्द-गिर्द सारे संबंधों का ताना-बाना हुआ करता है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं!”
- चाणक्य
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ऐसे लोगों को लक्ष्मी त्याग देती है।
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