- चाणक्य

“जो व्यक्ति धन-धान्य के लेन-देन में”

- चाणक्य

“विद्या अथवा किसी कला को सीखने में”

- चाणक्य

“भोजन के समय अथवा व्यवहार में लज्जाहीन होता है”

- चाणक्य

“अर्थात् संकोच नहीं करता वह कभी हानि में नहीं रहता है।”

- चाणक्य

“व्यक्ति को लेन-देन में किसी प्रकार का संकोच नहीं करना चाहिए।”

- चाणक्य

“अपनी बात स्पष्ट और साफ शब्दों में कहनी चाहिए।”

- चाणक्य

“विद्या अथवा किसी गुण को सीखते समय संकोच करने से भी हानि होती है”

- चाणक्य

“भोजन के समय, लोकाचार और व्यवहार के समय व्यक्ति को”

- चाणक्य

“संकोच न करके अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त करने चाहिए।”

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